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थलपति विजय ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी

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गुरुग्राम डेस्क | 14 अप्रैल 2025 को वक्फ संशोधन कानून 2025 को लेकर विवाद और गहरा गया, जब तमिल फिल्म अभिनेता और राजनेता थलापति विजय की पार्टी ने इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। इस याचिका के साथ ही केंद्रीय सरकार ने भी इस मामले में कैविएट याचिका दाखिल की है। यह कदम इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर कानूनी और राजनीतिक विवाद को और अधिक बढ़ा देता है, जो पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है।

वक्फ संशोधन कानून 2025: क्या है यह कानून?

वक्फ संशोधन कानून 2025, वक्फ एक्ट 1995 में बदलाव के लिए लाया गया है। इस संशोधन का उद्देश्य वक्फ संस्थाओं के प्रबंधन और संचालन में पारदर्शिता और दक्षता लाना है। वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रशासन के लिए केंद्र सरकार ने इस कानून को पास किया है। हालांकि, यह कानून कई विवादों और आलोचनाओं के घेरे में है, खासकर धार्मिक स्वतंत्रता और वक्फ संस्थाओं की स्वायत्तता के मुद्दे पर।

संशोधन के मुख्य बिंदु:

  • यूनिफाइड वक्फ प्रबंधन: यह संशोधन वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को केंद्रीकृत करता है, जिससे उनका बेहतर इस्तेमाल हो सके।

  • वित्तीय पारदर्शिता: वक्फ संपत्तियों के वित्तीय प्रबंधन को अधिक पारदर्शी बनाने का प्रयास किया गया है।

  • सरकारी नियंत्रण में वृद्धि: इस संशोधन में सरकार का नियंत्रण वक्फ प्रबंधन पर बढ़ाया गया है, जिससे कई संगठनों को चिंता है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप कर सकता है।

थलापति विजय की पार्टी का वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ विरोध

तमिल फिल्म अभिनेता और राजनेता थलापति विजय की पार्टी तमिलनाडु वेत्रि कझगम (TVK) ने वक्फ संशोधन कानून 2025 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। पार्टी का कहना है कि यह कानून धार्मिक संस्थाओं की स्वायत्तता को प्रभावित करता है और संविधान के तहत दी गई धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।

राजनीतिक दृष्टिकोण से अहम:

  • थलापति विजय की पार्टी का यह कदम इस मामले को एक नए राजनीतिक आयाम में ले आता है। खासकर तमिलनाडु में विजय के समर्थकों का बड़ा वर्ग है, जो इस कदम को महत्वपूर्ण मानता है।

  • विपक्षी दलों और कई मुस्लिम संगठनों के साथ मिलकर TVK ने इस कानून को चुनौती दी है, यह सुनिश्चित करते हुए कि वक्फ संस्थाओं का स्वतंत्र संचालन बना रहे।

16 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन कानून पर सुनवाई के लिए 16 अप्रैल 2025 की तारीख निर्धारित की है। इस सुनवाई के दौरान कोर्ट यह तय करेगा कि क्या यह कानून संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है या नहीं।

क्या है महत्वपूर्ण?

  • इस सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट दोनों पक्षों की दलीलें सुनेगा, जिसमें एक तरफ केंद्र सरकार की दलीलें होंगी और दूसरी तरफ थलापति विजय की पार्टी और अन्य विरोधी दलों के तर्क।

  • अगर सुप्रीम कोर्ट इस कानून के खिलाफ निर्णय देता है, तो इसका प्रभाव पूरे देश में वक्फ प्रबंधन पर पड़ेगा। वहीं, अगर कोर्ट इसके पक्ष में फैसला देता है, तो कानून लागू हो जाएगा।

केंद्र सरकार की कैविएट याचिका: एक अहम कदम

केंद्र सरकार ने इस मामले में एक कैविएट याचिका भी दायर की है। यह याचिका केंद्र सरकार की तरफ से अदालत से यह आग्रह करती है कि वह इस मामले में कोई एकतरफा आदेश न दे। सरकार ने स्पष्ट किया है कि उसे इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर अपनी दलीलें रखने का पूरा अवसर मिलना चाहिए, ताकि अदालत के फैसले में केंद्र सरकार की तरफ से पेश किए गए तर्कों को भी शामिल किया जा सके।

केंद्र सरकार की स्थिति:

  • केंद्र सरकार का कहना है कि यह संशोधन कानून वक्फ संस्थाओं की कार्यप्रणाली को अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक है।

  • सरकार ने यह भी आग्रह किया है कि कोर्ट केंद्र सरकार को सुनने के बाद ही कोई निर्णय ले, ताकि इसके पक्ष को भी सही तरीके से प्रस्तुत किया जा सके।

वक्फ संशोधन कानून का संसद से पारित होना

वक्फ संशोधन बिल 2025 को संसद के दोनों सदनों से पास किया गया है। लोकसभा ने 3 अप्रैल 2025 को इसे मंजूरी दी थी, जिसमें 288 वोट इसके पक्ष में और 232 वोट इसके विरोध में पड़े थे। इसके बाद राज्यसभा ने 4 अप्रैल 2025 को इसे पास किया, जिसमें 128 वोट इसके पक्ष में और 95 वोट इसके विरोध में पड़े थे।

इस कानून के पास होने के बाद, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी इसे अपनी मंजूरी दे दी। इसके बाद गजट अधिसूचना जारी की गई, और वक्फ अधिनियम 1995 का नाम बदलकर “यूनिफाइड वक्फ मैनेजमेंट, इम्पावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट (UWEED) अधिनियम 1995” कर दिया गया।

विपक्ष और मुस्लिम संगठनों का विरोध

वक्फ संशोधन कानून 2025 के खिलाफ विपक्षी दलों और कई मुस्लिम संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया है। इन संगठनों का कहना है कि यह कानून वक्फ संस्थाओं की स्वायत्तता को खत्म कर देगा और धार्मिक मामलों में सरकार का अत्यधिक हस्तक्षेप होगा।

विरोध के मुख्य कारण:

  • धार्मिक स्वायत्तता का उल्लंघन: विरोध करने वालों का मानना है कि इस कानून के तहत सरकार का वक्फ प्रबंधन पर अत्यधिक नियंत्रण होगा, जो कि धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।

  • संगठनों की स्वायत्तता पर प्रभाव: वक्फ संस्थाओं को अपने वित्तीय मामलों में सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता होगी, जिससे उनका स्वतंत्र कामकाज प्रभावित होगा।

थलापति विजय की भूमिका और राजनीति

थलापति विजय तमिलनाडु में एक बड़े राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव वाले नेता के रूप में उभरे हैं। उनकी पार्टी का वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ विरोध इस बात को प्रमाणित करता है कि वह समाज के विभिन्न वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। विजय का यह कदम उन्हें और भी मजबूत राजनीतिक पहचान दिला सकता है, खासकर उन लोगों के बीच जो वक्फ कानून के खिलाफ हैं।

वक्फ संशोधन कानून की कानूनी और राजनीतिक जटिलताएं

वक्फ संशोधन कानून 2025 के खिलाफ थलापति विजय की पार्टी द्वारा दायर की गई याचिका और केंद्र सरकार की कैविएट याचिका, इस मुद्दे को और भी जटिल बना देती हैं। अब सुप्रीम कोर्ट की 16 अप्रैल 2025 को होने वाली सुनवाई इस मामले का निर्णायक मोड़ हो सकती है। कोर्ट का निर्णय ना केवल वक्फ प्रबंधन को प्रभावित करेगा, बल्कि यह पूरे देश में धार्मिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है।


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